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अपने अन्दर के डर को कैसे खत्म करें, अपने अन्दर के डर से कैसे बाहर आए, फोबिया

 

अपने अन्दर के डर को कैसे खत्म करें, अपने अन्दर के डर से कैसे बाहर आए, फोबिया

अपने अन्दर के डर को कैसे खत्म करें, अपने अन्दर के डर से कैसे बाहर आए, फोबिया

हेलो दोस्तों

 आप सभी का स्वागत है मेंटल हेल्थ काउंसलिंग बाय पृथ्वी पर।

 

 दोस्तों हम आज इस लेख के माध्यम से आप सभी को बताएंगे की डर से कैसे मुक्त हो। हम निडर कैसे बने। हम दिमागी तौर से मजबूत कैसे बनें।

  दोस्तों हमने इससे पहले आप सभी के साथ एक लेख साझा किया था जिसके अंदर बताया था कि हमारे अंदर डर पैदा कैसे होता है।

   डर के अंदर जो दो तंत्र है कंडीशनिंग और जनरलाइजेशन इसके जरिए हमारे दिमाग के अंदर किसी भी चीज को लेकर हमारे अंदर डर पैदा होता है।

    तो हम इस डर को मिटाए कैसे इसके लिए हमने उस भाग में बताया था कि रिकंडीशनिंग की जरूरत पड़ती है और रिकंडीशनिंग को हम सही तरीके से आगे हम जनरलाइज करते हैं तो उसके द्वारा जो डर है वह डर हमेशा के लिए मिट जाता है।

     तो दोस्तों आप किसी भी प्रकार के डर से परेशान हैं और आप चाहते हैं कि आप दिमागी तौर पर मजबूत बने और उस डर से हमेशा के लिए दूरी बनाना चाहते हैं। आप दिमागी तौर पर हमेशा फ्री रहना चाहते हैं तो इस लेख को पूरा पढ़ें। 

     और अगर आपने इसका पहला भाग नहीं पढा है कि डर कैसे पैदा होता है तो उस लेख को पूरा पढ़ें। उसके बाद इस लेख को पढ़ें तभी आपको यह लेख अधिक अच्छी तरह से समझ में आएगा।


यह भी पढ़ें: डर पैदा कैसे होता है भाग 1

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      तो चलिए हम आगे बढ़ते हैं इस लेख की तरफ दोस्तों सबसे पहले तो हम यह समझते हैं कि जो भी डर होता है उस डर के अंदर 3 अवयव होते हैं। 

      1परिस्थिती
      2विचार
      3भावना

       परिस्थिति जिसके कारण हमारे दिमाग के अंदर कुछ न कुछ विचार पैदा होते हैं। विचार जैसे हमारे दिमाग के अंदर विचार आते हैं वैसे ही हमारी भावनाएं आते हैं।

        दोस्तों जो परिस्थिति होती है वह परिस्थिति कुछ भी हो सकती है यह आंतरिक परिस्थिति या बाहरी परिस्थिति।

         बाहरी वातावरण के अंदर आपने किसी की मौत के बारे में सुना। किसी की दुर्घटना होते हुए देखा। आपने कुछ नकारात्मक समाचार सुना उसके बाद आप के दिमाग के अंदर विचार शुरू हो गए।

          आंतरिक वातावरण के अंदर आपके शरीर के अंदर कहीं पर दर्द हो रहा है। मान लो आप के दाहिने हाथ में दर्द हो रहा है। आपकी छाती के अंदर भारीपन महसूस हो रहा है। या आपके सिर के अंदर किसी भी तरह का भारीपन महसूस हो रहा है तो यह जो परिस्थिति है इस परिस्थिति से हमारे दिमाग में विचार शुरू होते हैं। 

          और जैसे ही हमारे दिमाग में विचार पैदा होते हैं उन विचारों के अनुसार हमें महसूस होने लगता है। हमारे अंदर भावनाएं आती है।

            इसको कुछ इस तरह से समझते हैं मान लो किसी की छाती के अंदर भारीपन महसूस हो रहा है। जैसे ही यह जानकारी दिमाग में जाती है। दिमाग इसका विश्लेषण करता है।

             वह कुछ इस तरह से विश्लेषण करता है कि हार्टअटैक के अंदर छाती में भारीपन महसूस होता है। मेरी छाती में भारीपन महसूस हो रहा है मतलब मुझे हार्ट अटैक है। तो छाती का भारीपन एक परिस्थिति है। इस परिस्थिति से जुड़ा हुआ विचार है हार्ट अटैक। और हार्ट अटैक का विचार जैसे ही हमारे दिमाग में आता है वैसे ही हमें बहुत ज्यादा घबराहट महसूस होने लग जाती है। बहुत ज्यादा बेचैनी सी महसूस होने लग जाती है। और उस घबराहट, बेचैनी की वजह से हमारा जो विचार की प्रक्रिया है वह ओवर थिंकिंग के अंदर चला जाता है।

              तो दिमाग में कुछ इस तरह के विचार आना शुरू हो जाते हैं कि मेरी तो यहां मौत हो जाएगी। और अगर मेरी मौत हो गई तो मेरे पीछे जो परिवार है उसका क्या होगा। बच्चे क्या करेंगे। मेरी पत्नी क्या करेगी। और मैंने जो इतनी सफलता हासिल की है, जो मैंने मेरे जीवन में इतना कुछ सीखा है उसका क्या मतलब रह जाएगा अगर उन सब चीजों का आनंद लेने के लिए मैं ही नहीं रहा। 

              तो धीरे-धीरे मन के अंदर निराशा पैदा होने लग जाती है और व्यक्ति धीरे-धीरे डिप्रेशन के अंदर चला जाता है।


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           तो दोस्तों जो डर है। डर के अंदर बेसिक तीन अवयव होते हैं। जो परिस्थिति उसके कारण विचार आ रहे हैं वह विचार और विचार के कारण जो महसूस हो रहा है वह भावनाएं।

                तो दोस्तों जो परिस्थिति है उसको हम A बोल रहे हैं, जो विचार है उसको हम B बोल रहे हैं और जो भावनाएं हैं उसको हम C बोल रहे हैं।

                 तो यहां पर क्या हो रहा है कि जो A और B है। उसकी आपस में कंडीशनिंग हो रखी है।

                  कंडीशनिंग का मतलब उस तरह की परिस्थिति में हमेशा वही विचार दिमाग में आना।

                   जैसे घंटी और खाने की कंडीशन हो गई थी। वैसे ही इन दो चीजों की आपस में कंडीशन हो गई है। दोनों चीजें आपस में जुड़ गई है।

                    उसी तरह से B और C हैं। 

    मतलब विचार और भावना है। उसकी भी आपस में कंडीशन हो रखी है।

     कंडीशनिंग कैसे होती है एक बार थोड़ा सा हम जान लेते हैं। जिससे आपको यह चीज और ज्यादा साफ हो जाएगी। कंडीशनिंग का प्रयोग था दो चीजों का आपस में जुड़ना। दो चीजें आपस में कैसे जुड़ रही थी।

      जैसे पेवलोव नाम के एक महान वैज्ञानिक थे। एक बहुत ही महान वैज्ञानिक थे। जिन्होंने यह प्रयोग किया था। बहुत ही साधारण प्रयोग था पर बहुत ही सार्थक प्रयोग था। सार्थक प्रयोग इसलिए था क्योंकि इसके प्रयोग ने हमारे सोचने समझने के तरीके को बदल दिया।

       यह प्रयोग अब थोड़ा सा इसके ऊपर आते हैं।

        पेवलोव ने एक कुत्ता लिया और उस कुत्ते के आगे खाना रखा। जैसे ही खाना रखा तो इस खाने के कारण कुत्ते को लार गिरने लगी। लार एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है। दूसरी बार उन्होंने वही कुत्ता लिया उसके आगे उन्होंने घंटी बजाई। घंटी बजाने पर कुत्ते को कोई लार नहीं आई, किसी भी प्रकार की भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई। तीसरी बार उन्होंने वही कुत्ता लिया उस कुत्ते के आगे घंटी बजाई और घंटी के साथ खाना दिया। तो कुत्ते को लार आने लग गई। अब ऐसा उन्होंने कई दिनों तक किया। कई दिनों तक उन्होंने घंटी के साथ खाना, घंटी के साथ खाना, घंटी और खाना एक साथ दिया। तो कुछ दिनों के प्रयोग के बाद घंटी और खाना जो एक साथ होने के कारण चौथी बार जैसे ही कुत्ते के आगे घंटी बजाई गई। अब उसको खाना नहीं दिया गया है। सिर्फ घंटी बजाई गई है जैसे ही घंटी बजाई कुत्ते के लार गिरने लग गई।

        तो अगर हम यहां पर जो खाना है उसको हम A बोल दे, और घंटी को अगर B बोल दे। थोड़े समय के बाद A और B आपस में जुड़ जाते हैं।

         जब A आता है तो हमारे मन में यह अपेक्षाएं आती है कि अब B भी आएगा। और B आएगा तो B के कारण जो भी भावनात्मक प्रतिक्रिया है जो आनी चाहिए वह प्रतिक्रिया आने लग जाते है।  तो चीजें आपस में जुड़ जाती हैं। एक बेअसर चीज भी भावनाएं पैदा करने लग जाती है। 

         जैसा कि हमारे विचारों के साथ हुआ है। हम यहां पर यह A खाना और B घंटी लेते हैं। जो आपस में जुड़ गई है।

          वैसे ही परिस्थिति और विचार बार-बार हम उस परिस्थिति के प्रति प्रकट होते हैं और उसी समय दिमाग के अंदर यह विचार आना। 

          मान लो आपको छाती के अंदर भारीपन महसूस हो रहा है। उसी समय हम ने इंटरनेट पर पढा कि छाती के अंदर भारीपन का क्या कारण है। तो दिमाग वहीं पर अटक जाना की छाती के अंदर भारीपन का कारण हार्ट अटैक है। फिर दूसरी बार और भारीपन हुआ_ हार्ट अटैक फिर भारीपन हुआ हार्ट_ अटैक।धीरे-धीरे यह चीजें आपस में जुड़ती चली जाती है। अब जुड़ती चली गई तो जैसी परिस्थिति होती है उस परिस्थिति के मुताबिक हमारे दिमाग में विचार आने लग जाते हैं। क्योंकि दो चीजें आपस में जुड़ चुकी है। और दो चीजों का आपस में जुड़ना ही कंडीशनिंग कहलाता है। परिस्थिति और विचारों का जोड़ा बन गया। अब जैसी परिस्थिति होगी वैसे ही विचार आएंगे।

           अब B विचार और C भावना।

            विचार और भावना इन दोनों की भी आपस में कंडीशनिंग हो गई है। तो इस तरह से यह चीजें आपस में जुड़ती चली जाती है। 

            इस कंडीशनिंग के अंदर ऐसा क्या होता है कि दो चीजें आपस में जुड़ जाती है ?

            दरअसल कंडीशनिंग के कारण हमारे दिमाग में न्यूरॉनल पैटर्न बन जाते हैं जो परिस्थिति को पहचानने लग जाते हैं। वह परिस्थिति को जैसे ही पहचान लेते हैं तो दिमाग के अंदर वैसे ही विचार आने लग जाते हैं।

             जैसे किसी भी कंपनी के अंदर कुछ ऐसे खास व्यक्ति होते हैं। जो कंपनी का जो वास्तविक डाटा है उसका विश्लेषण करते हैं। और विश्लेषण करने के बाद उसका एक सारांश तैयार करते हैं। तो जो विश्लेषक हैं ठीक उसी प्रकार हमारे दिमाग में भी जो न्यूरॉनल पैटर्न है वह वास्तव में एक प्रकार का विश्लेषक है। जो हमारे शरीर से बाहरी वातावरण से जो भी जानकारी आती है उस जानकारी का विश्लेषण करता है। 

             और विश्लेषक कोई ऐसे ही नहीं बन जाता है। विश्लेषक के लिए अभ्यास करना पड़ता है। जो विश्लेषक होता है, जो विशेष डाटा का विश्लेषण करता है। चाहे मान लो अर्थव्यवस्था से संबंधित हो, चाहे वह व्यापार से संबंधित हो, चाहे वह राजनीति से संबंधित हो, चाहे वह किसी भी पेशे से संबंधित हो इन सभी के विश्लेषण किए जाते हैं। इन सभी के जो विश्लेषक व्यक्ति होते हैं उन सभी विशेषज्ञों को अलग-अलग प्रशिक्षण मिलता है कि जो विशेष जानकारी आ रही है उस जानकारी का किस तरह से विश्लेषण करना है। ठीक वैसे ही हमारे दिमाग के अंदर न्यूरॉनल पैटर्न बन जाते हैं। और वह पैटर्न जो भी जानकारी आ रही है उस जानकारी का किस तरह से विश्लेषण करना है यह सेट हो जाता है। और यह सेटिंग कंडीशनिंग के जरिए होती है। कंडीशनिंग से एक बार पैटर्न बन गए। अब विशेष जैसी भी जानकारी आ रही है, उस परिस्थिति से संबंधित जानकारी आ रही है, जैसे छाती में भारीपन हो रहा है या फिर दाहिने हाथ में दर्द हो रहा है या सिर के अंदर भारीपन हो रहा है। तो यह जो जानकारी है इस जानकारी का इसी रास्ते से विश्लेषण किया जाता है कि हमारे दिमाग के अंदर खराब से खराब जो हो जाएगा। उस तरह के विचार हमारे दिमाग के अंदर आने लग जाते हैं। और जब खराब से खराब विचार आने लग जाते हैं तो उन विचारों से संबंधित भावनाएं जो है वह भावनाएं भी आने लग जाती है। 

             तो इस तंत्र के जरिए हमें डर महसूस होने लग जाता है। हम बहुत ज्यादा डरने लग जाते हैं, बहुत ज्यादा घबराने लग जाते हैं।

             अब हम यह जानते हैं कि इस चीज से बाहर कैसे आया जाए ?

          तो जिस तरह से कंडीशनिंग हुई है। उसी तरह से इन तीनों चीजों की आपस में रिकंडीशनिंग करने की जरूरत पड़ती है । 

               जो A और B की कंडीशनिंग हो रखी है। इसको रिकंडीशन किया जाता है। और B और C की कंडीशनिंग हो रखी है इसको भी वापस रिकंडीशन किया जाता है।

               B और C को  रिकंडीशन करने के लिए रिलैक्सेशन टेक्निक्स का उपयोग किया जाता है। और A और B को रिकंडीशन करने के लिए CBT का उपयोग किया जाता है।

               अब CBT किस तरह से काम करती है?

     इसको थोड़ा सा समझते हैं। जो परिस्थिति और विचार की कंडीशनिंग हो रखी हैं। इसको रिकंडीशनिंग करने के लिए जो भी परिस्थिति है। उस परिस्थिति को लेकर जो भी विचार है। उस विचार का विकल्प विचार जो हो सकता है। उस विचार को उस परिस्थिति के साथ जोड़ा जाता है। 




     जैसे CBT के अंदर A,B,C,D और E के खाने बने होते हैं। जो A का मतलब एक्टिवेट इवेंट, B का मतलब बिलीफ, C का मतलब कॉनसीक्वेंस, D का मतलब डिस्प्यूट और E का मतलब इफेक्ट होता है।

      तो D डिस्प्यूट के अंदर जो भी परिस्थिति को लेकर जो भी विचार दिमाग में आ रहा है। उस विचार का विकल्प विचार क्या हो सकता है। उस परिस्थिति की के अंदर जो विकल्प विचार जो अधिक वास्तविक हो। 


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      जैसे मान लो किसी के छाती के अंदर भारीपन हो रहा है। वह भारीपन किस वजह से हो सकता है। वह भारीपन थकावट की वजह से भी हो सकता है। वह भारीपन बेचैनी की वजह से भी हो सकता है। अगर मान लो छाती में भारीपन हो रहा है उस समय जो हार्ट अटैक का विचार आ रहा है। उसकी जगह अगर यह विचार आ जाता आ जाए की छाती के अंदर जो भारीपन है वह थकावट की वजह से भी हो सकता है, और रात को गलत तरीके से सोने की वजह से भी हो सकता है। तो अगर यह विचार हमारे दिमाग में आ जाए तो हमें इतनी ज्यादा घबराहट नहीं होगी। हमें इतनी ज्यादा बेचैनी नहीं होगी।

       तो यहां पर रिकंडीशनिंग करने के लिए जो परिस्थिति है। वह हम A बोल रहे हैं और जो B है वह जो पुराना विचार है उसकी जगह हम D वाला विचार जो है उसकी हम रिकंडीशनिंग कर रहे हैं। मतलब A और D जो नया वाला विचार है उसका हम अभ्यास कर रहे हैं। जो भी विकल्प वाला विचार संभव हो सकता है। उस परिस्थिति के अंदर उस विचार को हम जोड़ रहे हैं। जैसा कि CBT के अंदर होता है। जो भी बेकार विचार है उसको हटा रहे हैं उसकी जगह जो भी और अधिक वास्तविक विचार जो हो सकता है। 

       जैसे छाती के अंदर भारीपन का हमने उदाहरण लिया है।  छाती के अंदर जो भारीपन है वह बेचैनी की वजह से भी हो सकता है। थकावट के कारण भी हो सकता है उसकी वजह से भी भारीपन हो सकता है।

        तो धीरे-धीरे जब छाती के अंदर भारीपन और दिमाग के अंदर यह जो विचार है कि थकावट, छाती के अंदर भारीपन और थकावट, छाती के अंदर भारीपन तो थकावट तो यह चीजें जब बार-बार घंटी और खाना, घंटी और खाना की तरह बार-बार जुड़ते जाएंगे कंडीशनिंग होती जाएगी तो हमारे दिमाग में वैसे ही न्यूरॉनल पैटर्न बन जाएंगे। और जब हमारे दिमाग के अंदर नया न्यूरॉनल पैटर्न बन गया। नया विश्लेषणात्मक प्रक्रिया बन गई तो अब जो अगली बार जो जानकारी आएगी छाती के अंदर भारीपन की तो उस समय अपने आप जो दिमाग के अंदर विचार आएगा वह होगा की छाती के अंदर भारीपन है वह थकावट की वजह से भी हो सकता है। तो यह जैसे ही विचार आएगा अब हमको घबराहट नहीं होगी। अब हम बहुत अच्छा महसूस करेंगे।

         तो इस प्रक्रिया के अंदर समय कितना लगेगा ?

          इस प्रक्रिया के अंदर बहुत लंबा समय लगता है। मान लो कि हम किसी एक विशेष डर के साथ पिछले 4 सालों से रह रहे हैं। और मान लो कि हर दिन वह विचार हमारे दिमाग में एक बार गया है। मान लो कि हमारे दिमाग के अंदर एक बार जानकारी जाती है तो एक बार जानकारी जाने पर एक न्यूरॉनल पैटर्न बनता है। 

          हम उस न्यूरॉनल पैटर्न को 👆 से दिखा रहे हैं जो एक न्यूरॉनल पैटर्न है वह एक 👆 है।

          तो 1 महीने में 30 👆 बनेंगे। और एक साल में 365 👆 बनेंगे हमारे दिमाग के अंदर। और मान लो हम 4 साल से किसी डर से परेशान हैं, तो 365 × 4 = लगभग 1460 👆 बन जाएंगे। जो न्यूरॉनल पैटर्न है वह 1460 👆 पैटर्न बन जाएंगे। 

          अब मान लो हमने एक बार सकारात्मक रिकंडीशनिंग की, हमने एक बार रिकंडीशनिंग का अभ्यास किया। जैसे ही हमारे छाती के अंदर भारीपन हो रहा है तो छाती के अंदर भारीपन और हार्टअटैक के पैटर्न बने हुए हैं 1460 👆 और हमने एक बार अभ्यास किया। और एक बार अभ्यास के अंदर हमारे अंदर एक न्यूरॉनल पैटर्न बन गया। हम यहां पर पॉजिटिव न्यूरॉनल पैटर्न को 👇 से दिखा रहे हैं।

          अब मान लो हमने एक बार पॉजिटिव सोचा, दो बार सोचा, हमने 3 बार रिकंडीशनिंग करवाई, हमने चार बार रिकंडीशनिंग करवाई, ऐसा मान लो हमने 10 दिनों तक रिकंडीशनिंग का अभ्यास किया। 10 दिनों के अभ्यास के बाद यहां पर जो 👇 बनेंगे वह 10 👇 बनेंगे। और पहले से हमारे दिमाग के अंदर जो नेगेटिव 👆 है वह 1460 है। तो कहां 1460 👆और कहां 10 👇 तो बहुमत यहां नेगेटिव 👆 का है। जब बहुमत नेगेटिव 👆 का है तो जो नेगेटिव 👆 की वजह से जो नेगेटिव विचार आएंगे और नेगेटिव विचार के कारण भावना भी नेगेटिव ही आएगी। 

          हालांकि जो 10 👇 है उसकी जो भावना आ रही है, उसका महत्व बहुत कम है। वह इतना नहीं है कि हमें खुशी महसूस करा सके। 

          क्योंकि जो नेगेटिव विचारों के कारण जो नेगेटिव भावनाएं आ रही है वह बहुत ज्यादा है। वह बहुत ज्यादा होने की वजह से जो हमने 10 दिनों तक इस चीज का अभ्यास किया था। 10 दिन के अभ्यास मैं अभी बहुत कम 👇 बने हैं। अभी तो हमें बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है, बहुत लंबे समय तक हमें इस चीज का अभ्यास करना पड़ेगा।

           बहुत सारे लोग कहते हैं कि हम बहुत सारे मोटिवेशनल वीडियो देखते हैं, पॉजिटिव सोचने का बहुत ज्यादा अभ्यास करते हैं पर फिर भी दिमाग के अंदर पॉजिटिव विचार नहीं आता। तो जब तक पॉजिटिव न्यूरॉनल पैटर्न नहीं बन जाता और यह पैटर्न बनने चाहिए यह जो 1460 है अगर इन 1460 से ज्यादा न्यूरॉनल पैटर्न नहीं बन जाते पॉजिटिव पैटर्न नहीं बन जाते तब तक हमारे दिमाग के अंदर पॉजिटिव विचार नहीं आएगा, तब तक हमें पॉजिटिव महसूस नहीं होगा। क्योंकि इन नेगेटिव न्यूरॉनल पैटर्न की वजह से जो नेगेटिव भावनाएं बन रही है। हर दिन की सकारात्मकता तो उनको (नकारात्मकता) को बेअसर करने में ही चली जाती है। तो हमें और ज्यादा इस चीज का अभ्यास करना पड़ेगा।

            तो यह जो रिकंडीशनिंग है। इस रिकंडीशनिंग का अभ्यास बहुत लंबे समय तक करना पड़ेगा। 

            अगर मान लो आप दिन में एक बार अभ्यास करते हैं। यह 4 साल का उदाहरण है। अगर आप दिन में एक बार अभ्यास करते हैं तो हमें 4 साल लग जाएंगे, और अगर हम दिन में 2 बार अभ्यास करते हैं तो हमें 2 साल लग जाएंगे, और दिन में 4 बार अभ्यास करते हैं तो 1 साल लग जाएगा, और 8 बार अभ्यास करते हैं तो 6 महीने लग जाएंगे, और 16 बार अभ्यास करते हैं तो 3 महीने लग जाएंगे, और अगर हम दिन में 32 बार अभ्यास करते हैं तो हम डेढ़ महीने में ही इस समस्या को हल कर लेंगे।

             तो हमारे अभ्यास के ऊपर है कि हम अभ्यास कितना दृढ़ता के साथ करते हैं। जितने दृढ़ता के साथ अभ्यास करेंगे इस रिकंडीशनिंग का उतना ही मजबूत हमारे दिमाग के अंदर न्यूरॉनल पैटर्न बनेगा। और जितने न्यूरॉनल पैटर्न मजबूत बनते जाएंगे हम उतना ही आसानी से हमारे दिमाग के अंदर सकारात्मक विचार आने शुरू हो जाएंगे।

             तो यह लड़ाई बहुत लंबी है। सुबह से शाम तक जितने भी आयोजन हो रहे हैं। यह तो सिर्फ उदाहरण है।

              हमारे दिमाग में सुबह से लेकर शाम तक इतने सारे विचार आते हैं। उन विचारों से जुड़े हुए जो आयोजन हैं। उन आयोजन और विचार, आयोजन और विचार, आयोजन और विचार हम हमारे घर के अंदर इसका विश्लेषण करें कि हमारे दिमाग में कितनी बार नकारात्मक विचार आते हैं। और नेगेटिव विचार कौन-कौन सी परिस्थिति में आते हैं। तो उन परिस्थिति का विकल्प विचार क्या हो सकता है उस वैकल्पिक विचारों का अभ्यास शुरू करें।

               हम जितने मजबूती से अभ्यास करेंगे। और पूरे दिन के आयोजनों के ऊपर हम अभ्यास करेंगे उतने ही अच्छे परिणाम हमको मिलेंगे, उतने ही बेहतरीन परिणाम हमको मिलते हैं।

                यह जो रिकंडीशनिंग थी यह तो थी परिस्थिति और विचारों की रिकंडीशनिंग।

                 A और B की रिकंडीशनिंग जो B है उसको हटा के हमने D लगा दिया। अब D की रिकंडीशनिंग हो रही है। और रिकंडीशनिंग मजबूत हो गई तो उस परिस्थिति में विशेष विचार भी वही आएंगे। 

                 अब यहां पर विचार और भावना की रिकंडीशनिंग करनी है। वह यह है कि जो B और C आपस में जुड़ा हुआ है। जो B और C बार-बार एक दूसरे के साथ आ रहे थे, कि उस विचार की वजह से हमेशा डर वाली भावना आ रही थी। जो आपस में जुड़ी हुई है। विचार से डर, विचार से डर, विचार से डर दरअसल यह भी हमारी कंडीशनिंग की वजह से ही हो रखा है।

                 तो इसकी रिकंडीशनिंग करने के लिए हमें जो भी विचार है। मान लो B विचार दिमाग में आ रहा तो उसके साथ हमें रिलैक्सेशन टेक्निक को इस्तेमाल करना पड़ेगा। 

                 सबसे पहले तो हमें रिलैक्सेशन टेक्निक्स है उसका हमें बहुत अच्छे से अभ्यास करना पड़ेगा। रिलैक्सेशन टेक्निक्स में हम कुछ भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

                  जैसे हम मेडिटेशन को इस्तेमाल कर सकते हैं, हम प्राणायाम इस्तेमाल कर सकते हैं, हम कोई भी ब्रिदिग एक्सरसाइज इस्तेमाल कर सकते हैं, डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

                  शुरुआत में जब आप इसका इस्तेमाल करेंगे तो आपको यह रिलैक्स सेशन टेक्निक बिल्कुल काम नहीं आएगी क्योंकि हम सीखने की प्रक्रिया में होते हैं। तो शुरुआत में हमें यह रिलैक्सेशन टेक्निक्स बिल्कुल काम नहीं आएगी। यह हमें रिलैक्स नहीं करेगी, यह हमें शांत नहीं करेगी।

                   तो हम चाहते हैं कि यह रिलैक्सेशन टेक्निक्स हमारे काम आए तो हमें इस रिलैक्सेशन टेक्निक्स को बहुत ही अनुशासन के साथ अभ्यास लगातार करना पड़ेगा। और तब तक अभ्यास करना पड़ेगा जब तक यह जो रिलैक्सेशन टेक्निक्स है हमारे काम आने ना लग जाए, हमें रिलैक्स करना ना सिखा दे, हमें शांत रहना ना सिखा दे। 

            हम इस तकनीक का इस्तेमाल दिन में 2 बार कर सकते हैं, 3 बात कर सकते हैं या 4 बार अभ्यास कर सकते हैं।

             CBT में इसका इस्तेमाल 4 बार करना सिखाया जाता है। सुबह 8:00 बजे, 12:00 बजे, शाम 4:00 बजे और रात को 8:00 बजे। इन 4 समय हम इस रिलैक्सेशन टेक्निक्स का बहुत अच्छे से अभ्यास करें, डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें।

              जैसे ही इस तकनीक से हम रिलैक्स होना सीख जाएंगे। तो जैसे ही हमारे दिमाग में विचार आते हैं उसी समय हम हमारे रिलैक्सेशन टेक्निक को इस्तेमाल करें, और अपने आप को शांत करें। 

              यह जो रिलैक्सेशन टेक्निक है इसको काम आने में बहुत समय लगेगा। 

              जैसे कि हम बाइक चलाना सीखते हैं तो हमें प्रक्रिया पता होती है। बाइक चलाने का कि बाइक पर बैठे, बाइक की चाबी घुमाइए, बाइक का हैंडल पकड़े और शुरू करके उसके रेस को दबाए हम बाइक चला लेंगे। यह हमें पता होता है लेकिन क्या पहले दिन से ही हम बाइक चला लेंगे। नहीं चला पाते वह बाइक हमारे काम नहीं आती है। हमें लंबे समय तक उस बाइक को चलाने का अभ्यास करना पड़ता है। जैसे जैसे हम लंबे समय तक अभ्यास कर लेते हैं तो वह बाइक हमारे काम आने लग जाती हैं, वह हमसे चलने लग जाती है।

               तो ठीक वैसे ही रिलैक्सेशन टेक्निक का अभ्यास करें। हम जितना ज्यादा अभ्यास करेंगे यह रिलैक्सेशन टेक्निक्स हमें रिलैक्स रखने लग जाएगी, हमें शांत रखने लग जाएगी। जब हम शांत रहने लग जाएंगे तो जब भी दिमाग में विचार आता है अब हम इसको काम में ले सकते हैं।

                जब भी मान लो दिमाग में हार्ट अटैक का विचार आता है, कैंसर का विचार आता है या फिर लकवा मारने का विचार आता है। जब भी इस तरह के विचार आते हैं उसी समय अपने आपको रिलैक्स कीजिए, उसी समय रिलैक्सेशन टेक्निक को इस्तेमाल कीजिए।

                 तो जैसे जैसे हम रिलैक्सेशन एक्सरसाइज को इस्तेमाल करेंगे। धीरे-धीरे हार्ट अटैक का विचार रिलैक्सेशन, हार्ट अटैक का विचार रिलैक्सेशन, हार्ट अटैक का विचार रिलैक्सेशन इन दोनों की आपस में रिकंडीशनिंग हो जाएगी। और जैसे ही रिकंडीशनिंग हो जाएगी हम एकदम शांत रहने लग जाएंगेइस हार्टअटैक वाले विचार के साथ भी।

                 अब इसमें कितना समय लगेगा तो यह वही सब खेल है पैटर्न के ऊपर। एक बार पैटर्न बन गए ना हम हमेशा के लिए इस डर से, इस विचार से बाहर आ सकते हैं।

             यह कोई मोटिवेशन की बात नहीं है। यह समझने की बात है, सीखने की बात है। जितना बेहतरीन तरीके से हम इस चीज को समझेंगे उतना ही बेहतरीन तरीके से इस चीज से बाहर आएंगे। हम इस चीज से हमेशा के लिए पीछा छुड़ा पाएंगे। 

             अगर आपने यह सोच रखा है कि मुझे तो इस चीज से बाहर आना ही है, तो आप इस चीज को इस पूरी प्रक्रिया का अभ्यास करें।

              तो उम्मीद है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।

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