ब्रैकअप (संबंध विच्छेद) का मनोविज्ञान। ब्रैकअप होने पर व्यक्ति को किन किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
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दोस्तों आज हम इस लेख के माध्यम से ब्रेकअप के मनोविज्ञान के बारे में जानेंगे कि ब्रेकअप से कैसे बाहर आते हैं। मनोवैज्ञानिक तौर पर कौन-कौन सी प्रक्रिया होती है ब्रेकअप के दर्द से बाहर आने की।
आज हम इस लेख के माध्यम से इसी चीज के बारे में जानेंगे
जो ब्रेकअप होता है वह दरअसल दो व्यक्तियों के बीच में किसी भी तरह का जो रिश्ता है चाहे वह पारिवारिक रिश्ता हो चाहे वह प्यार का रिश्ता हो चाहे वह व्यापार का रिश्ता हो। बहुत तरह के रिश्ते होते हैं।
पर ब्रेकअप विशेष रूप से प्यार के रिश्ते के टूटने के तौर पर जाना जाता है। दो लोगों के बीच में जो प्यार का रिश्ता होता है।जो प्यार का रिश्ता जब टूटता है तो उसको ब्रेकअप बोलते हैं। जब भी रिश्ता टूटता है तो उसमें एक व्यक्ति तो बेनेफिशरी (लाभार्थी) होता है। और एक व्यक्ति सफरर (भुगतने वाला) होता है।
जो बेनेफिशरी होता है। उसके लिए इस ब्रेकअप से बाहर निकलना बहुत आसान होता है। जैसे बहुत सारे लोग यह कहते हैं कि मेरा जो पार्टनर है जो इतना आसानी से आगे कैसे बढ़ गया। मतलब उसको कुछ महसूस ही नहीं हो रहा। वह तो धड़ल्ले से फेसबुक पर पोस्ट डाल रहा है। वह तो इंस्टाग्राम पर फोटो डाल रहा है। वह तो इधर-उधर घूम रहा है। खूब मस्ती वाले स्टेटस लिख रहा है। जबकि मेरे लिए तो यह बहुत ज्यादा मुश्किल हो रहा है कि मैं तो इस चीज से बाहर निकल ही नहीं पा रहा।
तो जो आसानी से बाहर निकल जाता है वह बेनेफिशरी होता है। जबकि जो आसानी से बाहर नहीं आ पाता वह सफरर होता है।
बेनेफिशरी होता है उसके हाथ में यह जो रिश्ता होता है, उसका लोकस आफ कंट्रोल (नियंत्रण का ठिकाना) होता है। जबकि जो सफरर होता है उसके हाथ में लोकस आफ कंट्रोल नहीं होता है। लोकस आफ कंट्रोल क्या होता है।
जैसे एक कंपनी होती है। उस कंपनी का एक मालिक होता है। बाकी उसके कर्मचारी होते हैं। जो कंपनी से संबंधित फैसले है। जो सिस्टम कंपनी का है वह पूरा का पूरा मालिक के कंट्रोल में होता है। कर्मचारियों के कंट्रोल में नहीं होता।
तो उसी तरह से जो रिश्ता होता है उस रिश्ते से संबंधित जितने भी फैसले होते हैं वह फैसले बेनेफिशरी के हाथ में होते हैं।तो लोकस आफ कंट्रोल तो बेनेफिशरी के हाथ में होता है। और सफरर के हाथ में लोकस आफ कंट्रोल नहीं होता।
तो बेनेफिशरी लोकस आफ कंट्रोल हाथ में होने की वजह से आत्मविश्वास महसूस करता है। जबकि जो सफरर है वह बहुत ज्यादा निराशा, मजबूरी, बेकार महसूस करता है। बहुत ज्यादा निराशा महसूस करता है।
जो बेनेफिशरी होता है उसको बिल्कुल सही से पता होता है कि यह जो संबंध है वह क्यों ब्रेक किया जा रहा है। वह पहले से ही इस चीज की योजना बना चुका होता है कि मुझे यह रिश्ता तोड़ना है। मुझे कुछ नए रिश्तो में जाना है तो उसके चक्कर में वह पहले से ही पूरी योजना बना लेता है। और धीरे-धीरे अपने आप को हटाने की कोशिश शुरू कर देता है।
तो बेनेफिशरी जो होता है उसको यह संबंध तोड़ने में ज्यादा फायदा ही होता है। इसलिए उसको बेनेफिशरी बोलते हैं। और सफ़रर है उसको कोई लाभ नहीं मिलता दरअसल उसकी कोई योजना नहीं होती। उसकी तो स्वीकृतिया होती है कि उसका संबंध अच्छा बना रहे। रिश्ता आगे भी अच्छी तरह से चलता रहे। तो यह सफरर की स्वीकृतिया होती है। जबकि बेनेफिशरी की यह स्वीकृतियां नहीं होती। तो उसको रिश्ता तोड़ने में ज्यादा लाभ नजर आ रहा होता है। जबकि सफरर को ज्यादा लाभ नजर नहीं आ रहा होता है। इसलिए सफरर बहुत ज्यादा परेशान होता है। जबकि बेनेफिशरी परेशान नहीं होता है। क्योंकि बेनेफिशरी को बिल्कुल सही से कारण पता होता है कि रिश्ता क्यों तोड़ा जा रहा है। जबकि सफरर को कारण नहीं पता होता। इसकी वजह से वह बहुत ज्यादा परेशान होता है। सफरर यह कोशिश करता रहता है कि कैसे भी करके उसको वह कारण पता चल जाए जिसकी वजह से ऐसा हो रहा है। वह बार-बार बेनेफिशरी से संपर्क करने की कोशिश करता है। बेनिफिट के जो रिश्तेदार है, उसके जो दोस्त है उनसे बार-बार संपर्क करने की कोशिश करता रहता है। और यह जानने की कोशिश करता रहता है कि ऐसा क्यों कर रहा है मेरे साथ। मेरे से आखिर क्या गलती हो गई जिसकी वजह से वह मुझे छोड़ कर जा रहा है। वो मेरी जिंदगी से दूर होते जा रहा है। वह मुझे अपनी जिंदगी से दूर कर रहा है। तो यह सब जानने की कोशिश में लगा रहता है जिसकी वजह से वह बहुत ज्यादा परेशान होता है।
बेनेफिशरी के लिए इस दर्द से बाहर आना बहुत आसान है। वह बहुत ही आसानी से बाहर निकल जाता है। लेकिन जो सफरर है वह आसानी से बाहर नहीं निकल पाता।
तो यह जो ब्रेकअप से बाहर निकलने की प्रक्रिया है। वह विशेष रूप से केंद्रित है सफरर के लिए।
हालांकि बेनेफिशरी भी थोड़ा बहुत परेशान होता है। लेकिन इतना नहीं जितना सफरर होता है।
तो कौन कौन से चरण होते हैं जिससे सफरर बाहर आता है।
तो सबसे पहला चरण आता है वह चरण यह आता है।पहले तो सफरर को झटका लगता है। और साथ में हमेशा इनकार मोड में रहता है। जैसे ही सफरर को यह पता चलता है कि उनका रिश्ता टूट चुका है। बेनेफिशरी यह बात बोल चुका है कि अब हम ना तो आपस में बात करेंगे। ना हम मिलेंगे ना ही हमारे बीच में किसी भी तरह का मेल मिलाप होगा। ना तो मेरे किसी दोस्त से, मेरे किसी रिश्तेदार से कोई बात करोगे। तो उस बात को सुनते ही सफरर को बहुत गहरा सदमा लगता है। और जब गहरा सदमा लगता है तो वह एकदम इंकार मोड में रहता है। मतलब वह इस घटना को स्वीकार ही नहीं करता है कि ऐसा हो भी गया है क्या। क्योंकि वह पहले से अपनी दिमागी तौर पर तैयार नहीं होता। इसलिए इस चीज को स्वीकार करने में उसको समय लगता है। वह इंकार करता है कि हमारा ब्रेकअप हो ही नहीं सकता। जो मेरा साथी है वह मुझे छोड़ कर जा ही नहीं सकता। मैं उसके बगैर रह नहीं सकता या वह मेरे बगैर रह भी नहीं सकता। वह बहुत ही जल्दी लौटकर आएगा। वह इस चीज के लिए पूरी तरह से इनकार मोड में रहता है। यह जो चरण है कुछ समय तक रहता है।
उसके बाद जो चरण आता है। दूसरा चरण जो आता है वो आता है गुस्से का चरण होता है। जो सफरर होता है उसको इस चीज लेकर बहुत तगड़ा गुस्सा आता है। मूल रूप से उसको जो गुस्सा आता है। वो गुस्सा आता है अपनी बेबसी के कारण और जब गुस्सा आता है तो उसके फोटो और फोन नंबर डिलीट कर देता है। उससे जिस भी तरह से संपर्क हो सकता है उस सारे संपर्कों को डिलीट कर देता है। और आसपास जो लोग भी है उससे जब बात कर रहे होते हैं तो उनके ऊपर भी गुस्सा ज्यादा करता है। चिड़चिड़ापन सा हो जाता है। तो यह जो चरण होता है गुस्से का चरण होता है। और इस चरण में आसपास वाले इस चीज को समझ नहीं पा रहे होते हैं। तो वह इस चरण को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। जिसकी वजह से जो सफरर होता है उसकी पारिवारिक जिंदगी और ज्यादा परेशान हो जाती है। क्योंकि परिवार के लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा होता है कि वह इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहा है।
तो अगर गुस्से के चरण को सहानुभूति पूर्वक समझा जाए तो उस से गुस्सा काफी कम हो जाता है। तो कुछ समय तक यह गुस्से वाला चरण रहता है।
उसके बाद जो चरण आता है वह तीसरा चरण आता है। बारगेनिंग का। बारगेनिंग का मतलब जो सफरर होता है। वह हर तरह से इस कोशिश में लगा होता है कि कैसे भी करके सब कुछ नॉर्मल हो जाए। भगवान से प्रार्थना करता है कि भगवान कैसे भी करके उसको वापस मेरे जीवन में भेजदो। कैसे भी करके मेरा रिश्ता वापस वैसा का वैसा नॉर्मल कर दो। आप जो कहोगे वह कर लूंगा बस इस बार आप सब सही कर दो। आगे से ऐसा कभी भी नहीं होगा प्लीज प्लीज। यह सारी चीजें नॉर्मल हो जाए वह पूरी तरह से बारगेनिंग में लगा होता है।
और वह अपने जीवन को जो सैड सॉन्ग होते हैं उन सैड सॉन्ग को अपने साथ जोड़ता रहता है। या कहीं पर भी फिल्म के अंदर कोई सीन आ रहा होता है। अगर मान लो वहां पर कोई ब्रेकअप का या कोई ऐसी स्टोरी आ रही है जिसमें कोई लव ट्रायंगल हो या ब्रेकअप का सीन आ रहा है तो वह अपने आप को उस से जोड़ने लग जाता है। और वह हर सैड स्टोरी अपनी ही सैड स्टोरी लगने लग जाती है। और सैड स्टोरी के अंदर खुद को ही देखने लग जाता है कि यह सब कुछ फिल्म के अंदर नहीं हो रहा है यह सब कुछ उसके साथ हो रहा है। और हर चीज को अपने साथ जोड़ने लग जाता है।
जब यह बारगेनिंग वाला चरण पूरा होता है। उसके बाद जो चरण आता है वह चौथा चरण आता है डिप्रेशन का।
डिप्रेशन के अंदर जो सफरर को निराशा महसूस हो रही है। बेबसी महसूस हो रही है। जो उसको अकेलापन महसूस हो रहा है। क्योंकि जैसे ही पार्टनर अलग चला गया उसके अंदर विड्रोल आते हैं। जिस टाइम पर उसकी बातचीत होती थी उस टाइम पर खासकर विड्रॉल आते हैं। मान लो रात को बात हो रही थी तो रात का टाइम उसके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है। या फिर दोपहर में जिस भी टाइम मान लो 4:00 से 5:00 के बीच बातचीत होती थी तो 4:00 से 5:00 बजे के बीच में विड्रोल आते हैं। बहुत अजीब सा महसूस करता है। वह उस टाइम तो जो विड्रोल है वह विड्रोल उसके अंदर बहुत ज्यादा बेबसी सी उत्पन्न कर देते हैं। जैसे ही विड्रोल आते हैं वह उस विड्रोल से बाहर नहीं आ पाता।
रिश्ते को लेकर रिश्ते का लोकस आफ कंट्रोल उसके पास है नहीं। वह ना तो अपनी मर्जी से बेनेफिशरी को कॉल कर सकता है। ना मिल सकता है। ना उससे बात कर सकता है। ना उसके किसी साथी से बात कर सकता है। तो इस तरह इस वजह से वह डिप्रेशन में चला जाता है।
और इस डिप्रेशन की वजह से घर वालों के साथ इतनी बातचीत नहीं कर पाता। अपने काम पर भी ध्यान नहीं लगा पाता। अपने काम पर फोकस नहीं कर पाता। मान लो अगर कोई स्टूडेंट है तो वह अपनी परीक्षा की तैयारी कर रहा है। तो उसको बहुत ज्यादा परेशानी होती है। जब कोई ब्रेकअप के चरण से गुजर रहा है। और वह कोई ऐसा काम कर रहा है जिसके अंदर उसको अपना पूरा ध्यान उस काम के अंदर होना चाहिए। उस वक्त तो वह ब्रेकअप से गुजर रहा होता है वह और ज्यादा परेशान हो जाता है। क्योंकि उस समय हमारे जो परिणाम होते हैं वह हमारी जितनी भी कोशिशें होती हैं वह परिणाम ओरिएंटल होती हैं। पर ब्रेकअप की वजह से हम हमारी जो कोशिश है वह प्रॉपर वे में नहीं डाल पाते जिसके कारण हमें जो परिणाम मिलना चाहिए वह परिणाम हमें नहीं मिल पाता। उसकी वजह से भी बहुत ज्यादा परेशानी होती है। तो उसकी वजह से भी सफरर डिप्रेशन में चला जाता है।
तो इसके अंदर जो व्यक्ति है। वह अपने आसपास के वातावरण से, अपने आसपास के लोगों से उन सब से दूरी बना लेता है। फिर उसके कारण उसको किसी पर भरोसा भी नहीं होता है। एक बार जो उसका भरोसा टूट गया तो वह नए संबंध पर भरोसा करने में उसको बहुत ज्यादा दिक्कत होती है। वह आसानी से लोगों पर विश्वास नहीं कर पाता।
उसके बाद जो पांचवा चरण आता है वह है एक्सेप्टेंस।
जितने भी मोटिवेशनल स्पीकर है जितने भी लोग हैं। वह सब यह कहते हैं कि भाई एक्सेप्ट करो। जबकि एक्सेप्टेंस एक ऐसी चीज है जो एक ही दिन में नहीं आती। दरअसल एक्सेप्टेंस तक पहुंचने के लिए इन सारे चरणों से गुजरना ही पड़ता है।
सबसे पहले इनकार मोड से गुजरना पड़ता है। फिर गुस्से वाला चरण आता है। फिर बारगेनिंग का चरण आता है। उसके बाद डिप्रेशन का चरण आता है। फिर उसके बाद एक्सेप्टेंस का चरण आता है।
एक्सेप्ट के चरण में दरअसल जो सफरर होता है। वह इस चीज को स्वीकार कर लेता है कि अब कुछ नहीं हो सकता। यह तो प्रकृति का नियम है कि लोग आपस में मिलते हैं और आपस में फिर दूर भी हो जाते हैं। रिश्ता बनता ही इसलिए है कि वह एक दिन टूट सके।
तो इस तरह की उसके अंदर एक्सेप्टेंस आ जाती है। और जब एक्सेप्टेंस आ जाती है तो यहां से बाहर आना बहुत ज्यादा आसान हो जाता है। पिछले चारों चरण जो होते हैं वह काफी मुश्किल होते हैं। लेकिन इस चरण में आते ही वह आसानी से इस चीज से बाहर आ जाता है।
यह भी उसी चरण में आ जाता है जिस चरण में बेनेफिशरी होता है। बेनेफिशरी शुरुआत से ही एक्सेप्टेंस वाले मोड में होता है। लेकिन जो सफरर है वह शुरु से एक्सेप्टेंस के मोड में नहीं होता। वह पांच वे चरण में आता है एक्सेप्टेंस के मोड में।
दरअसल जो बेनेफिशरी होता है उसके अंदर जो एक्सेप्टेंस जो आती है वह एक्टिव एक्सेप्टेंस आती है। जबकि जो सफरर उसके है उसके अंदर पैसिव एक्सेप्टेंस आती है। यह एक्टिव एक्सेप्टेंस और पैसिव एक्सेप्टेंस क्या होता है कि बेनेफिशरी जो कारण पता होता है कि किस वजह से आगे बढ़ना है। सफरर जो इस चीज का सामना करता है उसकी वजह से उसको यह कारण मिल जाता है कि भाई अब इतना मैं परेशान हुआ हूं उस व्यक्ति के लिए क्या अभी भी मैं उसके लिए, उसके पीछे अपनी जिंदगी खराब करूंगा। क्या अभी भी मैं अपना सारा करियर खराब करुंगा उस व्यक्ति के लिए जिसको मेरी याद तक नहीं आती, जो मेरा ख्याल तक नहीं रखता।
इन सब चीजों की वजह से उसके अंदर पैसिव एक्सेप्टेंस विकसित हो जाती है। और पैसिव एक्सेप्टेंस जैसे ही आती है वह आगे निकल जाता है। फिर वह इस यूनिवर्स की धारणा को समझ लेता है कि भाई चीजें बनती ही बिखरने के लिए है।
तो ठीक है जब हम मिले थे उससे पहले भी तो हम एक दूसरे को नहीं जानते थे। हम दोनों अजनबी थे। चलो ठीक है अभी भी हम एक दूसरे के लिए अजनबी है ऐसा मान लिया जाए। तो वह इस चरण में आकर मान लेते हैं।
मतलब जब हम सड़क पर चलते हैं तो कुछ लोग मिलते हैं। कुछ लोगों को हम जानते हैं उसमें से कुछ लोग भूल जाते हैं। बहुत सारे लोग अच्छे लगते हैं उनको छोड़ ना होता है। अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ते जाते हैं। सड़क पर जब हम चलते हैं तो एक टैक्सी पकड़ते हैं तो एक टैक्सी को छोड़कर दूसरे टैक्सी में चले जाते हैं। और धीरे-धीरे हम जो यह टेक्सिया हैं यह साधन है। यह हमारी मंजिल नहीं है। तो यह धीरे-धीरे उनको एक्सेप्टेंस में आती है कि हमारा जो लाइफ का मक़सद है। लाइफ को जीना वह सही से समझ में आने लग जाता है। जब वह एक्सेप्टेंस वाले पेज में आते हैं।
इस पूरी प्रक्रिया के अंदर टाइम लगता है। लगभग 4 से 6 महीने का एक टाइम पीरियड लगता है। इस पूरे चरणों से बाहर आने में जो ब्रेकअप है उस पूरी प्रक्रिया से बाहर आने में लगभग 4 से 6 महीने का टाइम लगता है। तो यह समय लेने वाली चीज है।
जैसे बहुत सारे वीडियो है। उसको हम देखते हैं बहुत सारे लोग बोलते हैं कि आप स्वीकार करो। तुम्हारे अंदर ताकत है। तुम यह कर सकते हो। दोस्तों हर इंसान कर सकता है। वह बोलते हैं कि तुम आगे बढ़ने के बारे में सोचो। तो हर इंसान आगे बढ़ना चाहता है। कोई भी नहीं चाहता कि वह उस परेशानी को झेले। हर इंसान उस चीज से बाहर निकलना चाहता है लेकिन वह नहीं निकल पा रहा होता है। उसको प्रॉब्लम हो रही होती है। तभी तो वह यह सब चीजें कर रहा होता है। तो दोस्तों हमें यहां पर यह समझने की जरूरत है कि इस पूरी प्रक्रिया के अंदर टाइम लगता है एक्सेप्टेंस आने में टाइम लगता है। तो इसके अंदर लगभग 4 से 6 महीने का टाइम लगता है। और जब एक बार एक्सेप्टेंस आ जाती है वापस वैसे के वैसे हो जाते हैं। जैसे हम संबंध से पहले थे हमें किसी भी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ता। तो उस वाले मोड में हम आ जाते हैं।
तो दोस्तों आप ब्रेकअप से गुजर रहे हैं या आपके आसपास कोई ब्रेकअप से गुजर रहा है या कोई दोस्त गुजर रहा है तो उसके साथ इस ब्लॉग को जरूर शेयर करें। और उसको बताएं कि भाई वह अभी कौन सी वाले चरण में हैं।
तो दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं आपको यह ब्लॉक पसंद आया होगा।


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