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डर (फोबिया) क्या है, डर के प्रकार। डर की परिभाषा

 

डर (फोबिया) क्या है, डर के प्रकार। डर की परिभाषा

डर कितने प्रकार का होता है। डर की परिभाषा। डर (फोबिया) क्या है

 डर कितने प्रकार का होता है। डर की परिभाषा। डर (फोबिया) क्या है

आप भी किसी डर से डरे हुए रहते हैं ? किसी चीज से आप परेशान रहते हैं ? कोई भी छोटी छोटी चीजें आपको हर वक्त डराती रहती है ? तो ये लेख आपके लिए है।

पूरी जानकारी को आप अच्छे से पढे। इस सिद्धांत को अच्छे से समझने का प्रयास करें।

ये जानकारी जो आपको इस लेख से मिल रही है आपके काम तभी आएगी जब आप इस जानकारी का बहुत अच्छे से अभ्यास करेंगे। इस अभ्यास के अंदर टाइम लगेगा। इसके अंदर तकरीबन चार से छह महीने का समय लगता है। जब आप इस जानकारी को बहुत अच्छे से अभ्यास करेंगे तो ही आपके मनोविज्ञान का हिस्सा बनेगी। उसके प्रति आपकी स्वीकृति बढ़ेगी। जैसे ही आपकी स्वीकृति बढ़ेगी वो चीज आपके लिए काम करने लग जाएगी। 

जिंदगी में होने वाली बहुत सी चीजे हमें डराती है।

ये जो डर है वो वास्तव में दो तरह के होते हैं

1_ वास्त्विक डर
2_ काल्पनिक डर

वास्त्विक डर_  

एक डर जो हमें वास्त्विक चीजों से लगता है। जो वास्त्विक घटनाएं होती हे उससे लगता है। जो वास्तव में डर है उसकी परिभाषा क्या है ? 

वास्त्विक डर जो डर सबको समान रूप से डराता हों, जिससे सभी को समान रूप से डर लगता हो।

इस दुनिया का छोटे से छोटा या बड़े से बड़ा इंसान सभी इस डर से समान रूप से डरते हैं।

जैसे_ आपके सामने करंट का तार पड़ा है, उस करंट के तार में करंट दौड़ रहा है। उसको छूते हुए हर इंसान समान रूप से डरते हैं। उस करंट के तार को में छूऊ या चाहें आप छुओ उसमे समान रूप से करंट लगता है। ऐसा नहीं है कि आप को ज्यादा करंट लगेगा और मुझे कम करंट लगेगा, ये एक वास्तविक डर है।

कहीं पर आग लगी हुई है तो उस आग से सब को समान रूप से डर लगता है। ऐसा नहीं है कि वो आपको ज्यादा जलाएगी और मुझे कम जलाएगी, ये एक वास्तविक डर है।

कहीं पर बाढ़ आई हो तो सब को समान रूप से डुबाएगी, ऐसा नहीं है कि जो ज्यादा डरता है उसे ज्यादा डुबाएगी और जो कम डरता है उसे कम डुबाएगी। ऐसा बिल्कुल नहीं है।

कहीं पर भूकंप आ गया तो उस भूकंप का डर सबको समान रूप से लगेगा। ये वास्तविक डर है।

हमारी जिंदगी में वास्त्विक डर की जरूरत भी होती है क्योंकि वास्त्विक डर इंसान को जिंदा रखता है। ये जो वास्त्विक डर हे वो सकारात्मक डर है यह नकारात्मक नहीं है, क्योंकि यह हमारी जिंदगी को बनाए रखता है। 

सामने अगर करंट का तार पड़ा है और हमें डर ना लगे ओर उसे हम छू ले तो यह हमारी जिंदगी के लिए अच्छा नहीं है। आग लगी हुई है और हम डरते नहीं है, हम सीधे आग के अंदर चले जाए तो यह हमारी बहादुरी नहीं यह हमारी मूर्खता है। यह वास्त्विक डर बहुत जरूरी है।

काल्पनिक डर_ 

लेकिन कई बार हम ऐसे काल्पनिक डर से परेशान हो जाते हैं जो हे ही नहीं, जो वास्तव में होते ही नहीं। लेकिन फिर भी हम उनसे डरे हुए रहते हैं। इस काल्पनिक डर से दूर होना बहुत ज्यादा जरूरी है। क्योंकि काल्पनिक डर ऐसे होते हैं जिसमें यह कुछ लोगो को डराते है और कुछ लोगों को नहीं डराते हैं। जो लोग काल्पनिक डर को वास्त्विक डर मानते हैं वो तो इनसे बहुत ज्यादा डरते हैं। जो लोग काल्पनिक डर को वास्त्विक डर नहीं मानते वो इनसे बिल्कुल नहीं डरते हैं।

जैसे_ कुछ लोगों को हमेशा यह लगता रहता है कि उनको हार्ट अटैक आ जाएगा, जो भी भविष्य को लेकर विचार है, आ जाएगा, ऐसा होगा ये वास्त्विक डर नहीं है। ये एक काल्पनिक डर है।

में सड़क पर जाऊंगा तो मेरे को वहा पर दौरा पड़ सकता है, में वहा पर गिर जाऊंगा या मेरे को पैनिक अटैक आ जाएगा। ये एक काल्पनिक डर है, यह वास्त्विक डर नहीं है।

में सड़क पर गाड़ी चला रहा हूं मेरा एक्सीडेंट हो जाएगा में उस चीज को सही मान रहा हूं। होगा नहीं होगा वो बाद की बात है लेकिन में उस चीज को पहले से सही मान रहा हूं कि मेरा तो एक्सीडेंट होगा ही होगा। अगर में इस चीज को वास्त्विक मान रहा हूं तो मुझे वहा पर डर लगेगा।

में सड़क पर चल रहा हूं मेरे सिर की नस फट जाएगी, मेरे को लकवा हो जायेगा, में बेहोश हो जाऊंगा। ये एक काल्पनिक डर है।

में स्टेज पर जाऊंगा तो लोग मेरी मजाक उड़ाएंगे। हुआ नही है लेकिन में इस चीज को सही मान रहा हूं कि लोग तो सच में मेरी मजाक उड़ाएंगे ही उड़ाएंगे। में अच्छे से गा नहीं पाऊंगा, मे अच्छे से बोल नहीं पाऊंगा। ये जितने भी स्टेज से जुड़े कार्यक्रम है। हमारे दिमाग में जो डर है वो सब काल्पनिक डर है।

यह सब हुआ नहीं है लेकिनहमारे मन और दिमाग में हमने पहले से ही इन चीजों को सही मान रखा है, इन कल्पनाओं को हमने हकीकत मान रखा है वो हकीकत मानना ही हमें परेशान करता है।

मान लो सच में इन सब चीजों में डर होता तो वो डर सबको समान रूप से डराता। 

अगर स्टेज सच में डरावनी जगह होता तो वो डर सबको लगता ऐसा नहीं कि कुछ लोगों को तो लगता और कुछ लोगों को नहीं लगता ? पर ऐसा नहीं है दरअसल स्टेज को लेकर जो डर है वो हमारा काल्पनिक डर है।

परीक्षा को लेकर जो डर है वो हमारा काल्पनिक डर है, इंटरव्यू को लेकर जो डर है वो हमारा काल्पनिक डर है, व्यापार को लेकर जो डर है वो हमारा काल्पनिक डर है वो वास्त्विक डर नहीं है। अगर ये वास्तव में डर होता, सच में चीजे इतनी डरावनी होती तो कोई भी व्यक्ति व्यापार में सफल नहीं होता। हर कोई व्यक्ति जो करंट के तार से बचने की कोशिश करता है ठीक उसी तरह व्यापार करने से बचता, हर कोई व्यक्ति परीक्षा देने से बचता, हर कोई व्यक्ति इंटरव्यू देने से बचता, हर कोई व्यक्ति गाड़ी चलाने से बचता, हर कोई व्यक्ति बाहर जाने से बचता, हर कोई व्यक्ति दूसरो से मिलने से बचता दरअसल यह सब हमारे काल्पनिक डर है यह वास्त्विक नहीं है।

अब सवाल यह उठता है कि हम इन सब चीजों से बाहर कैसे आए? 

इन सब डर के प्रति हमारी जो समझ हे वो समझ ही हमें इन सब चीजों से बाहर निकाल सकती है। 

दरअसल जो लोग इन काल्पनिक डर से डरते हैं, वो इन्हें काल्पनिक नहीं मानते वो इसको वास्त्विक मानते हैं, इसी वजह से वो परेशान रहते हैं। अगर हम चाहते हैं कि इस प्रकार के डर से मुक्त हो तो हमे हमारे मानने का जो तरीका है, हमारी जो मान्यता है उस मान्यता को बदलना पड़ेगा। 

क्योंकि हमे जो भी चीजे महसूस होती है, हमे जो भी डर महसूस होता है वो हमारी इस मान्यता से ही महसूस होता है। 

अब अगर मुझे ऐसा लगता है कि मुझे हार्ट अटैक आएगा ऐसा मैने मान रखा है तो मेरे हाथ में थोड़ा सा दर्द भी होगा तो मुझे मुझे ऐसा लगेगा कि मुझे हार्ट अटैक आने वाला है या मेरे सिर की नस फटने वाली है, मुझे दौरा आने वाला है, मुझे लकवा मारने वाला है। फिर हम हमारे आस पास का वातावरण वैसा ही महसूस करने लग जाते हैं जैसी हमारी मान्यता बनी हुई है। 

आप अपनी मान्यता को बदलने की कोशिश करे ओर उसे बदले। उसको जब तक नहीं बदलोगे तब तक आपका अनुभव नहीं बदलेगा ओर जब तक आपका अनुभव नहीं बदलेगा तब तक आपकी कल्पना नहीं बदलेगी वो कल्पना भी नकारात्मक रहेगी।

तो आप अपनी मान्यता को बदले और मान्यता को बदल कर ही हम हमारे इस डर से मुक्त हो सकते हैं इस डर से बाहर आ सकते हैं।

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